भगवद गीता प्रथम श्लोक का भावार्थ और व्याख्या | Bhagavad gita first sloka

प्रेम प्रभु का बरस रहा है

पी ले अमृत प्यासे

सातों तीरथ तेरे अंदर

बाहर किसे तलाशे

कण कण में हरि

क्षण क्षण में हरि

मुस्कानो में आशुवन में हरि

मन की आंखे तूने खोली

तो ही दर्शन पाएगा

पता नहीं किस रूप में आकर

नारायण मिल जाएगा


'जिन भगवान् श्रीकृष्ण के अंग में सम्पूर्ण सृष्टि का सौन्दर्य ओत-प्रोत है, जिनका एक नाम लेने मात्र से पाप में आसक्त जीव भी भय से मुक्त हो जाता है जिनकी लीला का श्रवण करने मात्र से दुर्जय मन भी शीघ्र ही भगवान् में ठहर जाता है,और जिन्होंने अर्जुन को बछड़ा बनाकर कृपापूर्वक गीतारूपी दूध को दुहा, उन परम् दयालु भगवान श्री कृष्ण को हम कोटि कोटि प्रणाम करते हैं।'


नमस्कार दोस्तों राधे राधे

मैं हू लव कुमार और आप देख रहे हैं श्री हरि आनंद यात्रा यूटयूब चैनल 


आज हम आपके लिए लेकर आए हैं,

श्रीमद भगवद गीता के संस्कृत शलौको की अक्षरश: हिन्दी में व्याख्या जिसका आज दूसरा भाग है 


तो आइए ईश्वर के चरणों का आशीर्वाद लेकर इस वीडियो को शुरु करते हैं


पिछले भाग में हमने बात की थी कि जब भीष्म पितामह भी युद्ध के मैदान में अर्जुन के बाणों के द्वारा रथ से गिरा दिये गये, तो संजय हस्तिनापुर लौट आए, जहां राजा धृतराष्ट्र समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे। संजय ने धृतराष्ट्र को आकर यह समाचार सुनाया कि युद्ध के महान योद्धा शक्तिशाली भीष्म भी युद्ध के मैदान में अर्जुन के बाणों के द्वारा रथ से गिरा दिये गये हैं। इस समाचार को सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दुःख हुआ और वे विलाप करने लगे। फिर उन्होंने संजय से युद्ध का सारा वृत्तान्त सुनाने के लिये कहा,

यहीं से श्रीमद्भगवद्गीता का पहला अध्याय आरम्भ होता है। इस अध्याय के आरम्भ में धृतराष्ट्र संजय से प्रश्न करते हैं-


पहले श्लोक में धृतराष्ट्र कहते हैं 



धृतराष्ट्र उवाच


धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥


धर्मक्षेत्रे, कुरुक्षेत्रे, समवेताः, युयुत्सवः, 

मामकाः, पाण्डवाः, च, एव, किम्, अकुर्वत, सञ्जय ॥ 



आइए अब हम इस श्लोक के एक एक शब्द को break करके उसके हिन्दी अर्थ को जानने और समझने की कोशिश करते हैं


पदच्छेदः-


धृतराष्ट्र उवाच

धृतराष्ट्र = धृतराष्ट्र

उवाच = बोले


(श्लोक-१)


धर्मक्षेत्रे, कुरुक्षेत्रे, समवेताः, युयुत्सवः, मामकाः, पाण्डवाः, च, एव, किम्, अकुर्वत, सञ्जय ॥ १ ॥


धर्मक्षेत्रे = धर्मभूमि, 

कुरुक्षेत्रे = कुरुक्षेत्र में, 

समवेताः = एकत्रित या इकट्ठे हुए , 

युयुत्सवः = युद्धकी इच्छावाले, 

मामकाः = मेरे, 

पाण्डवाः = पाण्डु के पुत्रों ने, 

च = और, 

एव = भी, 

किम् = क्या, 

अकुर्वत = किया, 

सञ्जय = हे संजय !


धृतराष्ट्र बोले - हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के भी पुत्रों (Silent understood )ने क्या किया ? 


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