श्रीमद भगवद गीता के प्रथम श्लोक के एक एक शब्द का हिन्दी अर्थ | Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
ॐ श्री परमात्मने नमः
'जिन भगवान् श्रीकृष्णके अंग में सम्पूर्ण सृष्टि का सौन्दर्य ओत-प्रोत है, जिनकी लीला का श्रवण करनेसे दुर्जय मन भी शीघ्र ही भगवान् में ठहर जाता है, जिनका एक नाम लेने मात्र से पापमें आसक्त जीव भी भय से मुक्त हो जाता है और जिन्होंने अर्जुन को बछड़ा बनाकर कृपापूर्वक गीतारूपी दूध को दुहा, उन्हें हम प्रणाम करते हैं।'
श्रीमद्भगवद्गीता विश्व का अद्वितीय ग्रन्थ है। इस पर अब तक न जाने कितनी टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं, लिखी जा रही हैं और भविष्य में लिखी जायँगी, पर इसके गूढ़ भावों का अन्त न आया है, न आयेगा। कारण यह है कि यह भगवान् के मुख से निकली हुई दिव्य वाणी (परम वचन) है। इस दिव्य वाणी पर जो कुछ भी कहता या लिखता है, वह वास्तव में अपनी बुद्धि का ही परिचय देता है। गीता के भावों को कोई भी मनुष्य अपने इन्द्रियो-मन-बुद्धि से नहीं पकड़ सकता। हाँ, इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसहित अपने-आपको भगवान् के चरणों में समर्पित करके अपना कल्याण कर सकता है। जो अपने-आपको भगवान् के चरणों में समर्पित कर देता है, उनके शरणागत हो जाता है, उस पर गीता-ज्ञान का प्रवाह स्वतः आ जाता है। इसलिए गीता को समझने के लिये शरणागत होना आवश्यक है। अर्जुन भी जब भगवान् के शरणागत हुए, तभी भगवान् के मुख से गीता का प्राकट्य हुआ, जिससे अर्जुन का मोह नष्ट हुआ और उन्हें ज्ञान की प्राप्त हुई
आइए हम सब भी भगवान के चरणों का आश्रय लेकर गीता के प्रत्येक श्लोक के एक एक शब्द को break करके उसके हिन्दी अर्थ को जानने और समझने की कोशिश करते हैं
लेकिन आइए इससे पहले हम यह जान लेते हैं कि आखिर महाभारत युद्ध क्यों हुआ था, क्यों भगवान को गीता कहने की जरूरत पड़ी
इसके लिए हमें महाभारत युद्ध से पहले कौरव और पांडव के बीच घटित हुई घटना को थोड़ा सा जानना पड़ेगा तो आइए जानते हैं,
हुआ ये था कि पाण्डवों के राजसूय यज्ञ में उनके महान् ऐश्वर्य को देखकर दुर्योधन के मन में बड़ी भारी जलन पैदा हो गयी और उन्होंने शकुनि आदि की सम्मति से जुआ खेलने के लिये युधिष्ठिर को बुलाया और छल से उनको हराकर उनका सर्वस्व हर लिया। अन्त में यह निश्चय हुआ कि युधिष्ठिरादि पाँचों भाई द्रौपदी सहित बारह वर्ष वन में रहें और एक साल छिपकर रहे; इस प्रकार तेरह वर्ष तक समस्त राज्य पर दुर्योधन का आधिपत्य रहे और पाण्डवों के एक साल के अज्ञातवास का भेद न खुल जाय तो तेरह वर्ष के बाद पाण्डवों का राज्य उन्हें लौटा दिया जाएगा । इस निर्णय के अनुसार पांडवों ने जंगल में बारह साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास पूरा करके जब दुर्योधन से अपना आधा राज्य मांगने आए तब,दुर्योधन ने बिना युद्ध के उन्हें सुई की नोक के बराबर भी ज़मीन देने से इनकार कर दिया,इसके परिणामस्वरूप, पाण्डव अपनी माता कुंती के आदेश का पालन करते हुए,युद्ध करने का निश्चय किया। इस तरह से पाण्डवों और कौरवों के बीच महाभारत युद्ध की स्थापना हुई,और दोनों ओर से युद्ध की तैयारी होने लगी।
जब दोनों ओर से युद्ध की पूरी तैयारी हो गयी, तब भगवान् वेदव्यासजी ने धृतराष्ट्र के समीप आकर धृतराष्ट्र से कहा कि यदि तुम युद्ध देखना चाहते हो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि दे सकता हूँ, जिससे तुम यहीं बैठे-बैठे ही पूरे युद्ध को देख सकते हैं |
इस पर धृतराष्ट्र ने कहा, " हे ऋषि श्रेष्ठ! मैं जन्मभर अंधा रहा,और अब मैं अपने वंश के इस हत्याकांड को अपनी आंखो से नहीं देखना चाहता, परन्तु युद्ध का सारा वृत्तान्त भलीभाँति सुनना चाहता हूँ कि युद्ध कैसे हो रहा है।"
तब महर्षि व्यास जी ने कहा, 'मैं संजय को दिव्य दृष्टि देता हूं, जिससे वह सारे युद्ध को, सारी घटनाओं को, यहां तक कि वह सैनिकों के मन में आने वाले विचारों को भी जान लेगा, सुन लेगा, देख लेगा और तुम्हें भी सब कुछ सुना देगा।' इतना कहकर व्यासजी ने संजय को दिव्य दृष्टि दी।
व्यासजी द्वारा दिव्य दृष्टि प्रदान करने के बाद, संजय ने धृतराष्ट्र को युद्ध की घटनाओं को दिव्य दृष्टि से देखने और सुनाने की शक्ति प्राप्त की।
जैसे ही नियत समय पर कुरुक्षेत्र में युद्ध शुरू हुआ, संजय दस दिनों तक युद्ध के मैदान में ही रहे और घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से खुद साक्षात देखते रहे। जब युद्ध के महान योद्धा शक्तिशाली भीष्म भी युद्ध के मैदान में अर्जुन के बाणों के द्वारा रथ से गिरा दिये गये, तो संजय हस्तिनापुर लौट आए, जहां राजा धृतराष्ट्र समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे। संजय ने धृतराष्ट्र को आकर यह समाचार सुनाया कि युद्ध के महान योद्धा शक्तिशाली भीष्म भी युद्ध के मैदान में अर्जुन के बाणों के द्वारा रथ से गिरा दिये गये हैं। इस समाचार को सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दुःख हुआ और वे विलाप करने लगे। फिर उन्होंने संजय से युद्ध का सारा वृत्तान्त सुनाने के लिये कहा,
यहीं से श्रीमद्भगवद्गीता का पहला अध्याय आरम्भ होता है। महाभारत, के भीष्मपर्व में यह पचीसवाँ अध्याय है। इस अध्याय के आरम्भ में धृतराष्ट्र संजय से प्रश्न करते हैं- पहले श्लोक में धृतराष्ट्र कहते हैं
धृतराष्ट्र उवाच
धृतराष्ट्र उवाच
धृतराष्ट्र = धृतराष्ट्र
उवाच = बोले
(श्लोक-१)
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥
आइए अब हम इस श्लोक के एक एक शब्द को break करके उसके हिन्दी अर्थ को जानने और समझने की कोशिश करते हैं
पदच्छेदः
धर्मक्षेत्रे, कुरुक्षेत्रे, समवेताः, युयुत्सवः, मामकाः, पाण्डवाः, च, एव, किम्, अकुर्वत, सञ्जय ॥ १ ॥
धर्मक्षेत्रे = धर्मभूमि, कुरुक्षेत्रे = कुरुक्षेत्र में, समवेताः = एकत्रित या इकट्ठे हुए , युयुत्सवः = युद्धकी इच्छावाले, मामकाः = मेरे, पाण्डवाः = पाण्डु के पुत्रों ने, च = और, एव = भी, किम् = क्या, अकुर्वत = किया, सञ्जय = हे संजय !
धृतराष्ट्र बोले - हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के भी पुत्रों (Silent understood )ने क्या किया ?
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